हैलो दोस्तों अगर आप भारतीय अर्थव्यवस्था या कहे भारत की जर्जर होती अर्थव्यवस्था पर जानकारी हासिल करना चाहते है तो आप बिल्कुल सही जगह पहुँचे है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि मौजूदा हालात में भारत की अर्थव्यवस्था पर दुनिया के क्या सोचती है। आज बात भारतीय अर्थव्यवस्था के जर्जर होते हालात और विदेशी अख़बार पर।
केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने सोमवार को जीडीपी के आंकड़े जारी कर दिए, जिसमें यह नकारात्मक रूप से 23.9 फ़ीसदी रही है। दोस्तों भारतीय अर्थव्यवस्था में इसे 1996 के बाद ऐतिहासिक गिरावट माना गया है और इसका प्रमुख कारण कोरोना वायरस और उसके कारण लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन को बताया जा रहा है।
दुनिया में एक समय सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था रहे भारत के इस नए जीडीपी आंकड़े से जुड़ी ख़बरों और लेख को दुनियाभर के तमाम अख़बारों और मीडिया हाउसेज़ ने अपने यहां जगह दी है। जिसमें हम सबसे पहले बात करेगें सबसे पहले अमेरिकी मीडिया हाऊस की। अमरीकी मीडिया हाउस सीएनएन ने अपने यहां ‘भारतीय अर्थव्यवस्था रिकॉर्ड रूप से सबसे तेज़ी से सिकुड़ी’ शीर्षक से ख़बर लगाई है। इस ख़बर में कैपिटल इकोनॉमिक्स के शीलन शाह कहते हैं कि इसके कारण अधिक बेरोज़गारी, कंपनियों की नाकामी और बिगड़ा हुआ बैंकिंग सेक्टर सामने आएगा जो कि निवेश और खपत पर भारी पड़ेगा।
जापान के बिजनेस अख़बार निक्केई एशियन रिव्यू में भारतीय वित्त आयोग के पूर्व सहायक निदेशक रितेश कुमार सिंह ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है, ‘नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को जर्जर बनाया’। इसमें लिखा गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापार समर्थित छवि होने के बावजूद वो अर्थव्यवस्था संभालने में अयोग्य साबित हो रहे हैं, 2025 तक अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन (खरब) डॉलर की इकोनॉमी बनाने का सपना अब पूरा होता नहीं दिख रहा है।
मोदी की 5 ट्रिलियन इकोनॉमी की उड़ी धज्जियां
अखबार में आगे लिखा गया है कि “भारत के सबसे आधुनिक औद्योगिक शहर से आने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था कि वो अर्थव्यवस्था सुधारेंगे और हर साल 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे। छह साल तक दफ़्तर से आशावाद की लहर चलाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई है। जिसमें जीडीपी चार दशकों में पहली बार इतनी गिरी है और बेरोज़गारी अब तक के चरम पर है। विकास के बड़े इंजन, खपत, निजी निवेश या निर्यात ठप्प पड़े हैं। ऊपर से यह है कि सरकार के पास मंदी से बाहर निकलने और ख़र्च करने की क्षमता नहीं है।”
अमरीका के एक अन्य अख़बार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी अपने यहां इस ख़बर को जगह दी है। भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बुरी तरह बिगड़ी है। अमरीका की अर्थव्यवस्था में जहां इसी तिमाही में 9.5 फ़ीसदी की गिरावट है, वहीं जापान की अर्थव्यवस्था में 7.6 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। अख़बार लिखता है कि अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के मामले में भारत की तस्वीर कुछ अलग है क्योंकि यहां अधिकतर लोग ‘अनियमित’ रोज़गार में लगे हैं जिसमें काम के लिए कोई लिखित क़रार नहीं होता और अकसर ये लोग सरकार के दायरे से बाहर होते हैं, इनमें रिक्शावाले, टेलर, दिहाड़ी मज़दूर और किसान शामिल हैं।
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फ़ाइनेंशियल टाइम्स अख़बार का शीर्षक है ‘भारतीय अर्थव्यवस्था एक तिमाही के बराबर सिकुड़ी।’ अख़बार लिखता है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस की मार से पहले ही कमज़ोर हालत में थी लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन में मैन्युफ़ैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन जैसे उद्योगों पर बड़ा असर डाला और व्यावसायिक गतिविधियां तकरीबन ठप्प पड़ गईं। अख़बार ने लिखा है कि आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इंटरव्यू के दौरान बेहद विश्वास से कहा था कि आरबीआई कमज़ोर आर्थिक स्थिरता या बैंकिंग प्रणाली को महामारी के झटके से बचा सकता है, इसमें अगले स्तर का आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाने का अनुमान लगाया गया है।
दोस्तों भारत के अलावा बाकि और दुनिया ने जिस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था की कमियों का बखान किया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि दुनिया के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था क्या कुछ मायने रखती है। जरूरत है देश के बड़े-बड़े प्रभुत्वजीवियों को मोदी सरकार के इस पहलू पर बारीकी से विचार कर देश की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाया जाए।
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