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शाही ईदगाह मस्जिद विवाद:- मथुरा कोर्ट में याचिका, नमाज पर रोक लगाने की मांग

petition in mathura court, demand for ban on namaz

मथुरा || मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और उस पर लगातार उठ रहे विवाद धीरे-धीरे बड़े होते जा रहे है। दिसंबर में यह तीसरी बार है जब मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को हिंदुत्ववादी संगठनों ने निशाना बनाने की कोशिश की है। 6 दिसंबर के बाद 10 दिसंबर और अब एक बार फिर मस्जिद और मस्जिद के अंदर पढ़े जा रहे नमाज़ पर ऐतराज जताया जा रहा है।

जनपद के सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में शाही ईदगाह मस्जिद में पांच वक्त की नमाज पढ़ने से रोकने को लेकर याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि पहले यहां कभी भी नमाज नहीं अदा की जाती थी। अब पांच वक्त की नमाज अदा की जा रही है। इससे सौहार्द्र खराब हो सकता है। जी हां बिल्कुल सही पढ़ा आपने दावा किया जा रहा है कि नमाज़ पढ़ने पढ़ाने से समाज का माहौल खराब हो सकता है।
बता दें कि श्री कृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर जनपद के सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में कई मामले अभी विचाराधीन हैं। अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इसमें कहा है कि शाही ईदगाह मस्जिद में कुछ दिनों से पांच वक्त की नमाज अदा की जा रही है जो कि पूर्व में कभी नहीं होती थी।
 

याचिका में इतिहास का भी जिक्र किया गया है। अर्जी के मुताबिक, “अभी भी ईदगाह मस्जिद की दीवारों पर ॐ, शेषनाग, स्वास्तिक जैसे हिंदुओं के धार्मिक चिह्न मौजूद हैं। साल 1669 में इसे क्रूर आक्रांता औरंगजेब ने उक्त संपत्ति पर बने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया था। जिस स्थान पर मस्जिद बनाई गई थी, वह स्थल भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का मूल स्थल है जो कि गर्भगृह के नाम से जाना जाता है।”

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लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने याचिका में आगे कहा है, “हमने मथुरा की अदालत में विवादित भूमि पर नमाज पढ़ने से मना करने की अर्जी दी है। पहले यही माँग हम जिलाधिकारी से भी कर चुके हैं।” जानकारी के मुताबिक़, अदालत इस पर 5 जनवरी 2022 को सुनवाई कर सकती है।

इससे पहले इसी वर्ष जून में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन समिति ने इस मामले का शांतिपूर्ण हल निकालने का प्रयास किया था। इस समाधान के फॉर्मूले में वर्तमान विवादित स्थल से बड़ा स्थान उन्हें कहीं और देने की पेशकश की गई थी। यह फॉर्मूला अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि विवाद के समाधान से मिलता-जुलता था। इस फॉर्मूले की शर्त यह भी थी कि मुस्लिम पक्ष को विवादित ढाँचा खुद से गिराना होगा।

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