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मनीषा को इंसाफ दिलाने में कौन देरी कर रहा है…

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उत्तर प्रदेश के सड़कों पर शासन-प्रशासन, राजनीतिक और मीडिया कर्मियों की मारामारी देखी गई। उत्तर प्रदेश के हाथरस में घटित हुई एक बर्बर घटना ने पूरे देश को एक और निर्भय की याद दिला दी। एक बार फिर लोगों ने सड़कों पर उतरकर इंसाफ के लिए अपने गुस्से का इजहार किया।  एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश की इस घटना ने लोगों को झिंझोड़कर रख दिया। लेकिन इस पूरे मामले में शासन-प्रशासन का जो कुछ रवैया देखने को मिला वो देश की कानून व्यवस्था और प्रशासन की लापरवाही को कटघरे में खड़ी करती है। 19 साल की एक बेबस लड़की मनीषा वाल्मिकी जिसने 15 दिन तक शासन की लापरवाही और खुद के बेदम होते शरीर से जंग लड़ी और आखिरकार दम तोड़ दिया।

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बता दें कि 14 सितंबर को 19 साल की एक लड़की के साथ बर्बरता की गई।  उसकी आत्मा को छलनी किया गया। उसकी जबान काटी गई, गर्दन की हड्डी और रीड की कई हड्डियां को तोड़ा गया। इतनी बर्बरता तो कोई जानवर भी जानवर के साथ नहीं दिखाया। ऐसा घिनौना काम खुद को समाज के ठेकेदार बताने वाले लोगों ने किया उस लड़की का दोष शायद इतना ही रहा हो कि वह जिस समाज से आती थी उसे दलित कहा जाता है। पीड़िता ने मरने से पहले अपना बयान दर्ज करायावा जिसमें उसने अपने साथ हुए क्रूरता का भी जिक्र किया है।

दो हफ्ते तक खुद की सांसों से जंग लड़ रही मनीषा ने 29 सितंबर को दम तोड़ लेकिन पुलिस प्रशासन और शासन की लापरवाही यहीं खत्म नहीं हुई 29 सितंबर की रात यूपी पुलिस में वह काम भी कर दिया जिसको लेकर प्रशासन की संवेदनशीलता से ही विश्वास सा उठ जाए।  हद तो तब हो गई जब परिवार को शव देने के बजाय रात 2:00 बजे करीब रेप पीड़िता का अंतिम संस्कार पुलिस प्रशासन ने बिना परिजनों के  किसी अनाथो की तरह  खुद ही कर दिया। ।

क्या थी पूरी घटना

14 सितंबर को हाथरस के थाना चंदपा इलाके के गांव में सुबह 9 बजे के करीब 19 साल की पीड़िता के साथ 4 आरोपियों ने बाजरे के खेत में गैंगरेप किया। आधिकारिक बयान के मुताबिक 10 बजे लड़की के भाई की शिकायत के आधार पर धारा 307 समेत SC/ST एक्ट के तहत FIR दर्ज कर ली गई। लड़की के भाई ने संदीप और उसके साथियों पर मारपीट और जान से मारने की कोशिश का आरोप लगाया। यहीं से लापरवाही की कहानी शुरू हुई, मामला दर्ज ज़रूर हुआ लेकिन गैंगरेप का नहीं बल्कि छेड़खानी और एससी-एसटी एक्ट के तहत। बाद में इसमें धारा 307 (हत्या की कोशिश) जोड़ी गई। आरोपियों की पहचान गांव के ही रहने वाले संदीप, लवकुश, रामू और रवि के रूप में हुई। संदीप को पुलिस ने 14 सितंबर को ही गिरफ्तार कर लिया।

भाई का कहना है कि आरोपी उसकी बहन को दुपट्टे गले में फंसाकर घसीटते हुए ले गए थे। परिवार ने जब पीड़िता को खोजा तो वो बेसुध हालत में खेत में पड़ी मिली। घटना के बाद पीड़िता को हाथरस के ज़िला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।  प्राथमिक इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि युवती गर्दन को क्रूरता के साथ मरोड़ा गया था। उसके निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। बाद में परिवार के कहने पर ही लड़की को अलीगढ़ में AMU के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया।  रिपोर्ट में 4 जगह चोट के निशान मिले थे, साथ ही रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई थी।

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पूरे देश में इस घिनौने हत्याकांड को लेकर गुस्सा देखने को मिला लोग सड़कों पर उतर आए लेकिन अब यूपी पुलिस ने इस केस में एक ऐसा बयान दिया है जिसके बाद पूरे केस की कायापलट हो गई। यूपी पुलिस के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी प्रशांत कुमार ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि पीड़िता की मौत गर्दन की चोट के कारण हुई है एस एल यानी फॉरेंसिक साइंस रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हो पाई है। लिहाजा फाइनल रिपोर्ट में रेप का जिक्र नहीं है हालांकि प्राइवेट पार्ट को गंभीर नुकसान पहुंचाने का उल्लेख किया गया है। यूपी पुलिस ने साफ किया कि इस मामले में कुछ लोगों ने जातिगत तनाव को बढ़ाने के लिए मामले को तूल दिया है अब ऐसे लोगों की पहचान करके उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।

अगर यह बात मान भी ली जाए की पीड़िता के साथ बलात्कार जैसी घटना नहीं हुई है तो पीड़िता कब है बयान जिसमें उन्होंने खुद अपने साथ हुए कुकर्म का जिक्र किया है वह क्या है इसके अलावा अगर कुकर्म जैसी कोई घटना नहीं हुई तो पुलिस को आनन-फानन में बिना परिजनों की मौजूदगी में शव का दाह संस्कार करने की जरूरत क्यों महसूस हुई।

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यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो शासन प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है आज ना जाने कितनी ही निर्भया शासन और प्रशासन की लापरवाही की बलि चढ़ती रही है अब फैसला हमें करना है कि हमें किस तरह का कानून चाहिए वह कानून जो कभी खुद सबूतों की दुहाई देता है और कभी खुद ही सबूतों को दरकिनार कर रिपोर्टों का हवाला देता है।

इस पूरे मामले में आप क्या सोचते हैं हमें कमेंट करके जरूर बताएं और आपको क्या लगता है क्या मनीषा वाल्मीकि के आखिरी बयान को महत्व मिलना चाहिए या फिर फॉरेंसिक रिपोर्ट को हमें कमेंट में जरूर बताएं । लाइक और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

 

गुलफशा अंसारी

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